I guess, this is the time &date to pick-up from where I left a year back, and to relive those days of growing up more than 3 decades back...
...to remember & pay tribute to a person, who was so much a part of that time and era in my life...
The Theme, then was
भटका भटका भटका दिया है प्यार ने फिर प्यार पाने के लिए...
here are some of the verses which followed...
जब कभी इस साँस का स्वर
मौन हो जय बिखर कार
पवन के संग गीत बन कर
बहेगा मेरे लिए...
***
साध खो दूँ जब स्वयं की
छांह में तपते बदन की
अधर पर भाषा अधर की
लिखेगी मेरे लिए....
***
किसी जलती दोपहर में
थके जीवन के सफर में
लड़खादृंगा डगर में
किंतु मत रोको प्रिये!....
***
गीत साँसों का मिले
dhadkanon का काफिला यह
ruk saka naa silsila यह
kshan मरे, pal-pal jiye...
***
s**t!! technology defies.... can't manage "transliteration".... giving up :(
एधर
का काफिला ए
Sunday, January 11, 2009
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