केवल मूक हुई है वाणी
इतना भी तुम सम्हज ना पाए
मौन अधर भी कहते हैं कुछ...
कविता बन जाती स्मृतियाँ
चाहे कितनी भी सूखी हों,
बीती ऋतू की लुटी कहानी,
पुस्तक-पृष्ठों में मुरझाये
सूखे पुष्प सुनाते हैं अब...
आड़ी-तिरछी रेखाओं के
अर्थहीन जाले दिखते हैं
जिनकी लेख नहीं पहचानी
जिस रहस्य को समझ ना पाए
अर्थ वहां भी रहते हैं पर...
31-3-'72, Lucknow
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Monday, November 29, 2010
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