Saturday, November 26, 2011

गीत बन आई अधर पर, सोन-जूही याद तेरी

No, I did not write this poem... though, I did grow with these, when Santee-Joe scripted these verses
(we were 20-something then... and life was both an upcoming romance - and a challenge..!

गीत बन आई अधर पर,
सोन-जूही याद तेरी
शाम यूं लहरा रही
मानों समय की साधंना में
मौन साधे...
गुन-गुनते ज्यों कोई भाषा ह्रदय की...

छिप गई गहरायें में
वेदना सी
दबदबाये नयन की अभिव्यक्ति अंतिम
सांस में अंधड़ समेटे
चिर प्रतीक्षा में थके पग
राह पर फिर ठेलती सी
आंसुओ से लिख गयी वह
जो ना कह पाई अधर से
याचना प्यासे अधर की...

राह पर फिर ठेलती सी
आंसुओ सी लिख गयी वह
जो ना कह पाई अधर से
याचना प्यासे अधर की...

Wednesday, November 23, 2011

स्वप्निल सा था साथ तुम्हारा...

स्वप्निल सा था साथ तुम्हारा
कोहरे में,छिप गया अँधेरा,
धुंधला धुंधला,
भीगा भीगा,
तारों पर मखमली बसेरा..

हाथ पकड़ कर
साथ चले तो
पग-पग धरती पर उतरा
सपनों भरा यथार्थ हमारा...
(Jan 12, '77 - Lucknow/IITK)

Tuesday, November 01, 2011

भटका दिया है प्यार ने फिर प्यार पाने के लिए...

...bits of verses that have traversed across a life-span

घेरती यादें पुरानी,
प्रेम की अद्भुत निशानी
मिट रही बन-बन कहानी
अर्थ पाने के लिए...

स्वप्न जो जन्मा ह्रदय मैं
पला पलकों की सहन में
अश्रु बन बहता नयन से
छलक जाने के लिए...

भटका दिया है प्यार ने फिर प्यार पाने के लिए...
(Aug 28th, 1974 - Lucknow)