Tuesday, July 12, 2011

मौन अधर भी कहते हैं कुछ...

केवल मूक हुई है वाणी,
इतना भी तुम सम्हझ न पाए,
मौन अधर भी कहते हैं कुछ...

कविता बन जाती स्मृतियाँ,
चाहे कितनी भी सूखी हों,
बीती ऋतू की लुटी कहानी,
पुस्तक पृष्ठों पर मुरझाये,
सूखे पुष्प सुनाते हैं कुछ...

आड़ी-तिरछी रेखाओं के,
अर्थहीन जले दिखते हैं,
जिनकी लेख नहीं पहचानी,
जिस रहस्य को सम्हझ ना पाए,
अर्थ वहां रहते हैं कुछ...

- 31st march, 1972