सोचता हूँ एक दिन ऐसा भी होगा
खुद से मैं कह सकूँगा डूबती सी यादों में
अब न इंतजार, न मंजिल की तलाश
ज़िन्दगी गूंजती है कायनातों में...
Sunday, January 19, 2014
Tuesday, January 07, 2014
और सोलह साल बीते जा रहे हैं...
और सोलह साल बीते जा रहे हैं...
जानता था, समझता, झुटला रहा था
एक परदा गिर रहा था, धुंध जैसा
और मैं सहमा हुआ सा, याद करता...
एक पगडंडी जहाँ हम-तुम चले थे
साथ थे, पर तुम्हारी राह अपनी...
और मैं चलता चला आया यहाँ तक
जानता, इस दौर में मेरे कदम भी
एक दिन मिल जायेंगे वहीँ पे ...
पर मैं ये भी समझता हूँ... कि हमसब बुलबुले हैं
कारवां आते रहे, जाते रहे हैं...
जानता था, समझता, झुटला रहा था
एक परदा गिर रहा था, धुंध जैसा
और मैं सहमा हुआ सा, याद करता...
एक पगडंडी जहाँ हम-तुम चले थे
साथ थे, पर तुम्हारी राह अपनी...
और मैं चलता चला आया यहाँ तक
जानता, इस दौर में मेरे कदम भी
एक दिन मिल जायेंगे वहीँ पे ...
पर मैं ये भी समझता हूँ... कि हमसब बुलबुले हैं
कारवां आते रहे, जाते रहे हैं...
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