कुछ सम्बन्ध
एक असहाय बच्चे सरीखे
किसी सहारे की तलाश में,
अपनी परिभाषा की खोज में,
भटकते रहते हैं...
उन्हें
एक पौधे की तरह
सींचना
...पालना..
आवश्यक होता है...
और ये पालना
सामजिक परिभाषाओं में आंकी हुई
स्वाभाविकता
के परे होता है...
- 09/07/80
Bhopal
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4 comments:
Kyaa mann ki bhasha, kyaa aankhon ki boli
Kyaa tum jaano, kyaa maine bola
Iss saagar ki unn lehron mein
Chaand ke resham dhaagon se
Kyaa tum jaano kyaa maine piroyaa
Ankahe, anchhue, iss rishte ki paribhasha mein
Kyaa tum jano kyaa maine payaa
आज 11/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
sach kaha apne.....
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार
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