Saturday, May 12, 2012

पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

पूँछ लूं मैं नाम तेरा...
मिलन रजनी हो चुकी, विच्छेद का अब है सबेरा...

जा रहा हूँ - और कितनी देर अब विश्राम होगा -
तू सदय है किन्तु तुझको और भी तो काम होगा
प्यार का साथी बना था, विघ्न बनने तक रुकूं क्यूँ?
सम्हझ ले, स्वीकार कर ले, यह कृतज्ञ प्रणाम मेरा...
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

और होगा मूर्ख जिसने चिर-मिलन की आस पाली -
'पा चुका, अपना चुका' - है कौन ऐसा भाग्यशाली?
इस तड़ित को बाँध लेना, दैव से मैंने न माँगा -
मूर्ख इतना हूँ नहीं मैं, इतना नहीं है भाग्य मेरा...
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

श्वास की हैं दो क्रियाएँ - खींचना, फिर छोड़ देना,
कब भला संभव हमें इस अनुक्रम को तोड़ देना?
श्वास की इस संधि-सा है, इस जगत में प्यार का पल,
रुक सकेगा कौन कब तक बीच पथ में डाल डेरा||
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

घुमते है गगन में जो दीखते स्वच्छंद तारे
एक आँचल में पड़े भी अलग रहते हैं बिचारे
भूल में पल-भर भले छू जाएँ इनकी मेखलाएँ -
दास मैं भी हूँ नियति का, क्या भला विश्वास मेरा!
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

प्रेम का चिर-एक्य कोई मूढ़ होगा तो कहेगा
विरह की पीड़ा न हो तो प्रेम क्या जीता रहेगा?
जो सदा बांधे रहे वह एक कारावास होगा -
घर वही है जो थके को रैन भर का दे बसेरा!
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

प्रकृति है अनुभूति, वह रस-दायिनी निष्पाप भी है,
मार्ग उसका रोकना ही पाप भी है, श्राप भी है,
मिलन हो मुख चूम लें; आई विदा लें राह अपनी -
मैं न पूंछू, तुम न जानो क्या रहा अंजाम मेरा!...
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

रात बीती, यद्यपि इसमें संग भी था, रंग भी था,
अलस अंगों में हमारे स्फूर्त एक अनंग भी था;
तीन की उस एकता में प्रलय ने तांडव किया था -
सृष्टि-भर को एक क्षण में बाहुओं ने बाँध घेरा!
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

सोच मत 'यह प्रश्न क्यूँ जब अलग ही हैं मार्ग अपने?'
सच नहीं होते, इसी से भूलता है कौन सपने?
मोह हमको है नहीं, पर द्वार आशा का खुला है -
क्या पता फिर सामना हो जाये तेरा और मेरा!
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...

कौन हम तुम? दु:ख-सुख होते रहे, होते रहेंगे;
जान कर परिचय परस्पर हम किसे जा कर कहेंगे?
पूछता हूँ क्योंकि आगे जानता है क्या बदा है -
प्रेम जग का, और केवल नाम तेरा, नाम तेरा!
पूँछ लूं मैं नाम तेरा...
मिलन रजनी हो चुकी, विच्छेद का अब है सबेरा...
-अज्ञेय

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