मानता हूँ फिर बहेंगी आंधियां,
घनघोर बरसेंगी घटायें
टूट जायेंगे सभी सपने हमारे
बिजलियों की चोट खा कर,
बह चलेंगे अश्रु बन कर,
क्रूर हंस देंगी हवाएं
आज बन हम फूल जो मुस्का रहे,
कल सूख कर तिनका बनेंगे,
उजड़ कर उपवन हमारा
जलेगा शमशान जैसा
कली के आंसू बहेंगे...
कल तुम्हारे आंसुओं के साथ मैं भी बह चलूँगा,
आज तो लेकिन बुला लो,
अश्रु चाहे कल बनूँ, पर आज तो सपना बना कर,
प्रिये! आंखों में सुला लो...
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३० मई '७४ Lucknow
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