Monday, June 06, 2011

सूखे अधरों, भीगी पलकों, में ही जीवन का सत्य छिपा...

a slice of life back then... as it was happening/ unfolding...

सूखे अधरों, भीगी पलकों
में ही जीवन का सत्य छिपा...

कितनी आशाएं हैं मन की,
फिर भी परिभाषा जीवन की,
मिटती प्रतिछवियों में सोयी,
बन गयी रिक्तता जीवन की...
...जो बोझ बना खालीपन से,
ऐसा हमको अमरत्व मिला ||

राहों के काँटों से बिंध कर
जो अपने थे, उनको खो कर
पग विवश हुए, बढ़ते जाते,
मन में झूठी आशाएं ले कर..
...अनजान डगर में भटक रहे,
ना राह मिली, ना लक्ष्य मिला ||

- Sept 23, '73

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