स्वप्निल सा था साथ तुम्हारा
कोहरे में,छिप गया अँधेरा,
धुंधला धुंधला,
भीगा भीगा,
तारों पर मखमली बसेरा..
हाथ पकड़ कर
साथ चले तो
पग-पग धरती पर उतरा
सपनों भरा यथार्थ हमारा...
(Jan 12, '77 - Lucknow/IITK)
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Just a space for my general musings, observations, and take on everything in general, and nothing in particular...
1 comment:
This poem touches my heart and made me remember my past.
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