(we were 20-something then... and life was both an upcoming romance - and a challenge..!
गीत बन आई अधर पर, सोन-जूही याद तेरी
शाम यूं लहरा रही
मानों समय की साधंना में
मौन साधे...
गुन-गुनते ज्यों कोई भाषा ह्रदय की...
छिप गई गहरायें में
वेदना सी
दबदबाये नयन की अभिव्यक्ति अंतिम
सांस में अंधड़ समेटे
चिर प्रतीक्षा में थके पग
राह पर फिर ठेलती सी
आंसुओ से लिख गयी वह
जो ना कह पाई अधर से
याचना प्यासे अधर की...
राह पर फिर ठेलती सी
आंसुओ सी लिख गयी वह
जो ना कह पाई अधर से
याचना प्यासे अधर की...

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