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महकी-सहमी कुछ यादें थीं
कुछ पल आये, और चले गए
उनसे करनी कुछ बातें थीं
और काल-चक्र बढ़ता जाता...
जीवन की डगमग गाड़ी में
पतझड़ के पत्तों सी जैसी
कुछ आशाएं जो शून्य हुयीं
कुछ इच्छाएं भी भूल गयीं
और काल-चक्र बढ़ता जाता..
लेकिन जीवन के आँचल में
इस उड़ते-बहके बादल में
शायद उन सपनों को इक दिन
मैं बाँध सकूंगा तथ्यों में
और काल-चक्र बढ़ता जाता..
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