Wednesday, February 06, 2013

जीवन यूं ही चलता रहता... ढलता रहता!

सूरज वैसे ही उगता है
धड़कन वैसी ही चलती है
मौसम बदला, पत्ते टूटे
फिर नयी कोपलें खिलती हैं
जीवन यूं ही चलता रहता... ढलता रहता!

अपनी खिड़की पर बैठा मैं
ऊँगली में थामे सिगरेट को
तकता रहता हूँ वही सड़क
जिस से इतिहास गुज़र जाता
जीवन यूं ही चलता रहता... ढलता रहता!

कुछ बदल गया पर वही रहा
साँसे वैसी ही चलती हैं
हर दिन एक सूरज ढलता है
हर दिन एक सूरज उगता है
जीवन यूं ही चलता रहता... ढलता रहता!

लेकिन इस बहते जीवन की
धड़कन की यति में कभी-कभी
सूरज के ढलने-उगने में
इक सन्नाटा, इक खोमोशी
इक अन्धकार, खोयी यादें!!
लेकिन फिर भी...
जीवन यूं ही चलता रहता... ढलता रहता!

No comments: