Tuesday, March 18, 2014

उम्र जलवों में हमेशा तो बसर होती नहीं...

मैंने जज़्बात के ज़रिये ही दुनिया देखी....
उम्र ढलती रही औ’ रास्ते गुज़रते गए
एक माज़ी - वो आँखें जो मुझे देखती हैं
उनका गुनहगार तो हूँ मैं फिर भी
मैं कहूँगा कि मैं भटकता रहा, लेकिन फिर भी
मैंने उजड़े हुए मंज़र, भटकी हुईं गलियां देखीं...
उम्र जलवों में हमेशा तो बसर होती नहीं...
मैंने जज़्बात के ज़रिये ही दुनिया देखी....

ढूंढते रह गए कुछ ख्वाब जो अपनी मंजिल
ख्वामखाह जीने की कुछ रस्में निभाते रहे
हाँ, सही है कि कुछ ले के चले, भूल गए
मगर ये पगडंडियों कहाँ से चलीं, और अब कहाँ लाईं
इनकी सोहबत में मरुस्थल में भी कलियाँ देखीं...
उम्र जलवों में हमेशा तो बसर होती नहीं...
मैंने जज़्बात के ज़रिये ही दुनिया देखी....

इक समन्दर की लहर जैसी ये दिल की हलचल
क्या पता किस भंवर में एक दिन सम जायेगी
फिर भी कोशिश तो करी थी उछल के छूने की
आसमां को - मगर न बाँध सके आँधियों को पर फिर भी  
उन चंद लम्हों में छिपी सी कई सदियाँ देखीं...
उम्र जलवों में हमेशा तो बसर होती नहीं...

- Jamshedpur (Jan-March, 2014) 

2 comments:

Himanshu Sheth said...

रंग होली के कविता में ढल गए..... बहुत खूब मधुकरभाई!

santee joe said...

Wah !!