Tuesday, October 12, 2010

ऐसा भी तो हो सकता था...

Last evening, I had posted this pic on my photoblog, which I had taken on a beach of California... it was a romantic/nostalgic capture of a precious moment of some unknown lives which crossed mine...

While posting it, the caption/ a phrase "ऐसा भी तो हो सकता था..." cropped in my mind. Apparently it triggered something in mind - and so after almost two decades, today I penned-down/ keyed-in some verses...

So now I can claim that I am once-a-year-poet for last two years :)... the last one too, was stimulated by a phrase a year back - 'गर रहे सलामत ये पागलपन...

anyways... here are the random meanderings

ऐसा भी तो हो सकता था...

फिर एक हवा का झोंका आ कर मेरी यादों को छूता,
औ' बादल का एक टुकड़ा फिर से मेरे आँगन में रुकता
गाता फिर से वो राहगीर, जो एक समय साथी मेरा,
दिल रहता वही भिखारी, मेरा मन भी बंजारा रहता...

ऐसा भी तो हो सकता था...

वो बच्चा जो गिनता रहता, बूँदें बिजली के तारों पर,
कुछ सहमा-सा एकाकीपन जो खोज रहा छोटा सा घर,
उस जीवन के छितरे टुकड़े, जो कभी-कभी मिल जाते हैं,
'ग़र जी उठते वो खोये पल, तो फिर वो पागलपन होता..

ऐसा भी तो हो सकता था...

इक पगडंडी जो टूट गयी, इक राह कहीं पे छूट गयी,
कुछ रिश्ते आगे बढे नहीं, कुछ साथ चले पर चले गए,
ऐसे डगमग से जीवन में, लोगों से, यादों से सीखा
चलते रहना, चलते जाना - शायद जीवन यूँ ही बहता...

ऐसा भी तो हो सकता था...

2 comments:

abhishek said...

Superb Sir :)

Urmila Tripathi said...

very good, bhyia
persue your talent.
Gudiya