Wednesday, November 23, 2011

स्वप्निल सा था साथ तुम्हारा...

स्वप्निल सा था साथ तुम्हारा
कोहरे में,छिप गया अँधेरा,
धुंधला धुंधला,
भीगा भीगा,
तारों पर मखमली बसेरा..

हाथ पकड़ कर
साथ चले तो
पग-पग धरती पर उतरा
सपनों भरा यथार्थ हमारा...
(Jan 12, '77 - Lucknow/IITK)

1 comment:

sushmita said...

This poem touches my heart and made me remember my past.