Monday, December 19, 2011

... जी नहीं, बस भीड़ में अकेले हैं!


आप बड़े दुखी हैं,
बेचारे,
सहानुभूति के आकांक्षी!
क्या महंगाई के मारे हैं?

बेकारी से बेज़ार
दुखी दांपत्य के भोक्ता हैं?
क्या स्वाधीनता-संग्राम में,
आपने बहुत कष्ट झेले हैं?

"... जी नहीं
बस
भीड़ में अकेले हैं!"

- दिनकर सोनवलकर

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