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जब मैंने खिड़की से झाँका
तो ओस की एक बूँद
कली की उनींदी पलकों पर
मोती सी चमकी थी
...और सूर्य की उसी किरण के बाणों से
भस्म हो कर
आकाश में बिखर गयी...
...कली खिली और फूल बन गयी
और दिन भर हवा में झूल कर
उसने
आकाश में झाँका था
कि शायद वो साथी
जिसने भोर की पहली किरण के साथ
माथा चूम कर उठाया था..
.. कहीं छुप कर क्रीडा कर रहा होगा!
जीवन का प्रथम सत्य!!
...उस दिन की संध्या को
जब मैंने खिड़की से झाँका
तो कली मुरझा चुकी थी....
...ये भी एक सत्य था!
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