... as a template which defined a tentative/hesitant engagement with relationships then... and, in a similar manner, with Life per se later on...
तू मेरे साथ चल ना पायेगी...
जब तेरी राह मेरी राह से मिलती ही नहीं,
फिर मेरा साथ निभाने की ज़रुरत क्या है
अपनी मासूम तमन्नाओं को रहबर ना बना,
ख्वाब फिर ख्वाब हैं, ख़्वाबों की हकीकत क्या है....
ये नयी राह तुझे रास नहीं आएगी...
मैंने माना कि तुझे मुझसे मुहब्बत है मगर,
मेरी ग़ुरबत तेरी चाहत का सिला क्या देगी,
अपनी महरूमी-ए-किस्मत से परेशान हूँ मैं,
बेबसी अश्क-ए-निदामत के सिवा क्या देगी,
वख्त की धूप में हर चीज़ झुलस जायेगी...
Amen!
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