XXIII
And we, that now make merry in the Room
They left, and Summer dresses in new bloom
Ourselves must we beneath the Couch of Earth
Descend--ourselves to make a Couch--for whom?
My Translation:
हम, कलिका बन खिले -
धरती ने प्रेम दिया
गगन ने गीत दिया,
और हम निखर गए...
सूरज ने तपन दी,
पवन ने झझकोर दिया,
और हम बिखर गए,
धरती के आँचल का श्रृंगार बन कर...
कि हम, खिलें, महकें,
अपनी ही सुरभि में,
झूम-झूम बहकें,
और बिखरें धरती के आँचल पर...
...बनायें एक और आँचल
कि
हम पर गिरें जो पंखुडियां...
उन्हें चोट ना लगे
Omar Khayyam & Me - 1
Omar Khayyam & Me - 2
Omar Khayyam & Me - 3
Omar Khayyam & Me - 4
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