नहीं कोई व्यथा, लेकिन भटकता घूमता है मन,
मिला है राह का साथी, हमें बेलक्ष्य खालीपन |
हवा के साथ सूखे पात से हम उड़ चले जाते,
कभी मन है तो हम पत्थर के रूखेपन को अपनाते |
गगन से गीत पातें हैं, धरा की गोद मैं मचले,
जहाँ स्थिर रहे सदियों, वहीँ पल-पल कभी पिघले |
भटकने की इन्ही रंगीनियों में पा लिया जीवन,
मिटा कर के सभी रिश्ते, गगन में उड़ चले हैं हम |
- April 24, 1974
Monday, May 02, 2011
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