कुछ संबंध ऐसे होते हैं,
जो चहरों से चहरों तक होते हैं...
वो
दो अर्थहीन मुस्कानों पर
टिके रहते हैं...
और एक दिन
मुस्कानों के मिटने पर...
चहरे की मुर्दा
सिलवटों में
दफन हो जाते हैं....
- July 1, 1980, Bhopal
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Just a space for my general musings, observations, and take on everything in general, and nothing in particular...
2 comments:
kuchh nahin, kai sambandh aise hi hote haen..
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